GST सुधार: वास्तविकता और छोटे व्यापारी की समस्या


संपादकीय

सरकार ने इस दिवाली से पहले GST में बड़े बदलाव की घोषणा की है जो 22 सितंबर से लागू हो गए हैं। देखा जाए तो इन सुधारों में कई वस्तुओं को वास्तव में शून्य प्रतिशत टैक्स की श्रेणी में डाल दिया गया है। UHT दूध, पैकेज्ड पनीर, छेना, रोटी, पराठा, खाखरा जैसी रोज़ाना की चीज़ें अब बिल्कुल टैक्स फ्री हो गई हैं। वहीं मक्खन, घी, चीज़ जैसे डेयरी उत्पादों पर GST 12% से घटकर 5% हो गया है। यहां तक कि 33 जीवन रक्षक दवाइयां भी अब पूरी तरह टैक्स फ्री हैं।

इसके अलावा स्टेशनरी सामान जैसे एक्सरसाइज़ बुक, नोटबुक, पेंसिल शार्पनर, इरेज़र, क्रेयॉन्स सभी पर भी शून्य टैक्स है। सबसे बड़ी बात यह है कि व्यक्तिगत स्वास्थ्य और जीवन बीमा पर भी अब कोई GST नहीं लगेगा। लेकिन क्या यह वास्तव में आम आदमी और छोटे व्यापारी के लिए खुशी की बात है?

समस्या की जड़ में जाएं तो पता चलता है कि हकीकत में यह इतना सीधा-सादा नहीं है जितना दिखता है। जब सरकार घोषणा करती है कि कल से UHT दूध टैक्स फ्री है या पनीर पर शून्य टैक्स है, तो एक दुकानदार जिसके पास पुराना स्टॉक पड़ा है, वह तुरंत मुसीबत में आ जाता है। वह तो अपना सामान पहले के टैक्स रेट पर खरीद चुका है। अगर वह नई दरों पर बेचेगा तो उसे नुकसान होगा। यह समस्या सिर्फ दूध या पनीर की नहीं है बल्कि सैकड़ों उत्पादों की है जिनके टैक्स रेट बदले गए हैं।

हमारे देश में करोड़ों छोटी दुकानें हैं जो GST के दायरे में नहीं आतीं। ये दुकानदार Input Tax Credit का फायदा नहीं उठा सकते। जब वे थोक व्यापारी से सामान खरीदते हैं तो उसमें GST का बोझ शामिल होता है लेकिन जब दरें कम हो जाती हैं तो उन्हें अपने पुराने स्टॉक पर नुकसान उठाना पड़ता है। एक किराना दुकानदार का कहना है कि हमारे पास 15-20 दिन का स्टॉक पड़ा रहता है। सरकार कहती है कि कल से कम दाम में बेचो लेकिन हमने तो पुराने दाम में खरीदा है। यह घाटा कौन भरेगा?

जब छोटे व्यापारी परेशान होते हैं तो इसका सीधा असर किसान और मज़दूर पर पड़ता है। व्यापारी अपने नुकसान की भरपाई के लिए या तो आपूर्तिकर्ता से कम दाम मांगते हैं या फिर कम मात्रा में सामान खरीदते हैं। इससे किसानों की आय घटती है और मज़दूरों के काम के अवसर कम हो जाते हैं। यह एक चेन रिएक्शन है जिसे समझना जरूरी है।

सरकार की तरफ से यह कहा जा रहा है कि अगर दुकानदार दाम कम नहीं करते तो लोग 1800-11-4000 या 1915 पर कॉल करके शिकायत कर सकते हैं। यहां तक कि WhatsApp नंबर 8800001915 पर भी संदेश भेज सकते हैं। लेकिन यह कोई समाधान नहीं है। असली समस्या का समाधान तो तब होगा जब सरकार इस बात को समझे कि छोटे व्यापारी का नुकसान वास्तविक है और इसकी भरपाई की जानी चाहिए।

सरकार को इस समस्या का स्थायी समाधान निकालना चाहिए। पहली बात तो यह है कि GST दरों में बदलाव के समय कम से कम 30 दिन का समय देना चाहिए ताकि पुराना स्टॉक खत्म हो सके। दूसरी बात यह है कि जो व्यापारी GST के दायरे में नहीं हैं उन्हें इस नुकसान की भरपाई के लिए कोई योजना बनानी चाहिए। तीसरी बात यह है कि थोक व्यापारियों और कंपनियों को स्पष्ट निर्देश देने चाहिए कि वे छोटे व्यापारियों के साथ इस समस्या का समाधान कैसे करें।

Mother Dairy और Amul जैसी बड़ी कंपनियों ने तुरंत अपने दाम कम कर दिए हैं। Amul ने 700 से ज्यादा उत्पादों के दाम घटाए हैं। घी पर 40 रुपए प्रति लीटर, मक्खन पर 4 रुपए प्रति 100 ग्राम और UHT दूध पर लगभग 3 रुपए प्रति लीटर की कमी की है। लेकिन छोटे दुकानदार के पास तो पुराना स्टॉक है जो उसने महंगे दाम में खरीदा था। उसका क्या होगा?

GST सुधार निश्चित रूप से एक अच्छी पहल है लेकिन इसका फायदा तभी मिलेगा जब छोटे व्यापारी भी इसमें भागीदार बनें। आज जरूरत है कि सरकार इन समस्याओं को समझे और व्यावहारिक समाधान निकाले। दिवाली का असली उपहार तब होगा जब किसान से लेकर दुकानदार तक सभी को इस बदलाव का फायदा मिले। अभी तो यह सिर्फ कागज़ों पर सुधार लग रहा है ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कह रही है।

आवाज़ नागरिक की - किसान, पर्यावरण और कल्याण की आवाज़

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