11 नवंबर को होगा मतदान, भाजपा विधायक की सदस्यता रद्द होने के बाद खाली हुई सीट पर अब त्रिकोणीय मुकाबले के आसार
जयपुर | राजस्थान की बारां जिले की अंता विधानसभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव ने सियासी तापमान बढ़ा दिया है। भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा की सजा के बाद खाली हुई इस सीट पर अब भाजपा और कांग्रेस दोनों दल पूरी ताकत झोंक चुके हैं। वहीं निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा के मैदान में उतरने से मुकाबला और दिलचस्प बन गया है।
दोनों दलों का फोकस अब बूथ-स्तर के माइक्रो मैनेजमेंट पर है। ब्लॉक स्तर पर नुक्कड़ सभाएं, सोशल मीडिया कैम्पेन और स्थानीय जातीय समीकरणों पर केंद्रित रणनीतियाँ तय कर ली गई हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, 11 नवंबर को होने वाला मतदान बेहद कांटे का रहने वाला है।
कांग्रेस की तैयारी: नेताओं की ड्यूटी तय, 25 अक्टूबर के बाद होगा फील्ड प्रचार
कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी प्रमोद जैन भाया के समर्थन में प्रदेशभर के नेताओं और कार्यकर्ताओं की ड्यूटी फाइनल कर दी है। पार्टी संगठन ने ब्लॉक और समाजवार रणनीति पर काम करते हुए करीब 150 नेताओं की टीम अंता भेजने की योजना बनाई है।
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस का फोकस वॉर रूम मैनेजमेंट के साथ-साथ हर बूथ पर सामाजिक समीकरणों के हिसाब से नेताओं को तैनात करने पर है। माली, मीणा, धाकड़, जाट और अन्य समाजों के प्रभावशाली चेहरे अपने-अपने क्षेत्र में वोट टर्नआउट बढ़ाने का जिम्मा संभालेंगे।
भाजपा की रणनीति: आईटी और ग्राउंड टीम एक साथ सक्रिय
दूसरी ओर भाजपा ने भी बूथ प्रबंधन पर पूरा जोर लगा दिया है। पार्टी की आईटी टीम पूरी तरह एक्टिव मोड में है और सोशल मीडिया पर अपने प्रत्याशी की छवि को मजबूती से प्रोजेक्ट कर रही है।
भाजपा ने प्रदेशभर से कार्यकर्ताओं को अंता बुलाकर ‘नो बूथ लेफ्ट ब्लैंक’ (कोई बूथ खाली नहीं) मिशन पर काम शुरू कर दिया है। दिवाली तक हर बूथ पर कार्यकर्ता सक्रिय रहने की योजना है।
प्रदेशाध्यक्ष द्वारा अंता के स्थानीय पदाधिकारियों के साथ ऑनलाइन मीटिंग भी पूरी कर ली गई है। इसके अलावा, पार्टी ने मीणा, माली और धाकड़ समाज के कार्यकर्ताओं को विशेष रूप से क्षेत्र में भेजना शुरू किया है, ताकि स्थानीय सामाजिक संतुलन को साधा जा सके।
त्रिकोणीय मुकाबले की आहट
इस बार अंता का उपचुनाव केवल भाजपा और कांग्रेस के बीच नहीं रहेगा। निर्दलीय नरेश मीणा की एंट्री ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नरेश मीणा के पास युवाओं का मजबूत समर्थन है, जिससे दोनों प्रमुख दलों की वोट-मैनेजमेंट रणनीति पर असर पड़ सकता है।
जातिगत समीकरण, बूथ-स्तर की तैयारी और आईटी वॉर रूम— यही तय करेंगे कि 14 नवंबर को मतगणना के दिन किस दल के सिर जीत का ताज सजेगा।

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