अजमेर। आनासागर झील के किनारे वेटलैंड और ग्रीनबेल्ट में किए गए निर्माणों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 17 अक्टूबर, 2025 को होनी है। प्रारंभिक सुनवाई 4 अगस्त को सूचीबद्ध न होने के कारण नहीं हो सकी थी; अब अगली तारीख निश्चित कर दी गई है और मामले की अदालती कार्यवाही फिर से तेज होने की संभावना है।
अधिकारियों ने कोर्ट के आदेशानुसार फूड कोर्ट पहले ही ध्वस्त कर दिया है और 12 सितंबर से सेवन वंडर के ढहाने का काम शुरू कर दिया गया था। प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि सातों अजूबों (सेवन वंडर) को 17 सितंबर तक हटाने का एफिडेविट दे रखा है; इसके बाद मलबा हटाने का काम भी चल रहा है। बावजूद इसके कुछ पक्के निर्माण — जिनमें पाथवे (करीब ₹39 करोड़ की लागत के बताए जा रहे हैं), ग्रीनबेल्ट में बने आजाद पार्क व गांधी पार्क के हिस्से — और सेवन वंडर की चारदीवारी अभी भी हटाए जाने बाकी हैं।
याचिकाकर्ता अशोक मलिक ने प्रशासन की कार्रवाई को “आधी-अधूरी” करार दिया है। मलिक का कहना है कि 17 सितंबर तक पूरी तरह तोड़ना था, पर चारदीवारी और खुदाई का काम शेष है; वेटलैंड की पूर्वावस्था बहाल करना अभी बाकी है। उन्होंने कोर्ट से न केवल अवैध निर्माण हटवाने बल्कि स्थान की पुनर्स्थापना (restoration) सुनिश्चित करने की मांग की है।
यह मामला 2023 अगस्त में एनजीटी में दायर याचिका के रूप में उठा था, जिसमें आरोप था कि आनासागर के आसपास मास्टरप्लान और वेटलैंड संरक्षण नियमों की अवहेलना हुई। एनजीटी ने 2023 में निर्माण कार्य हटाने का आदेश दिया। इसके बाद अजमेर डवलपमेंट अथॉरिटी (ADA) ने जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया; अब दोनों पक्षों की दलीलों के बाद शीर्ष अदालत ने 7 वंडर हटाने का आदेश पारित किया था और अब उसकी पूरी प्रक्रिया के कई तकनीकी व कार्यान्वयन पहलुओं पर अगले रिमांड पर सुनवाई होगी।
सेवन वंडर में बनाए गए ढांचों में पेरिस का एफिल टॉवर, मिस्र के पिरामिड, इटली की पीज़ा की झुकी मीनार, रोम का कोलोसियम, अमेरिका की स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी, ब्राज़ील के क्राइस्ट द रिडीमर और आगरा का ताजमहल शामिल थे। ये ढांचे स्मार्ट सिटी परियोजना के हिस्से के रूप में बनाए गए थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वर्ष 2022 में इनका उद्घाटन किया था। अब प्रशासन ने उन्हीं ढांचों को शीर्ष अदालत के आदेश के तहत हटाना शुरू कर दिया है।
प्रशासन की प्राथमिक चुनौती अब शेष पक्के निर्माणों और चारदीवारी को हटाकर वेटलैंड की मिट्टी व हाइड्रोलॉजी को पूर्ववत लाने की है। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि केवल कंक्रीट हटाना ही पर्याप्त नहीं — वास्तविक संरक्षण के लिये मिट्टी व वाटर-लॉजिक पुनर्स्थापना आवश्यक है। याचिकाकर्ता और स्थानीय पर्यावरण समूह यही मांग बार-बार कर रहे हैं।
आगामी 17 अक्टूबर की सुनवाई में कोर्ट से उम्मीद की जा रही है कि शेष निर्माणों, चारदीवारी व पुनर्स्थापना योजना पर स्पष्ट निर्देश जारी होंगे और यदि प्रशासन ने अपने एफिडेविट व समयसीमा का पालन नहीं किया तो सख्त कदम उठाए जा सकते हैं। स्थानीय प्रशासन ने शुरुआती तोड़फोड़ व मलबा हटाने की प्रक्रिया तेज कर दी है, पर यथेष्ट संरक्षण-संभवना दिखाने के लिये अदालत में विस्तृत रोडमैप पेश करना अभी शेष है।

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